मुजफ्फरपुर (बिहार) की सड़कें, चौक और गलियारे शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के कोकिल कंठ की आवाज़, बांसुरी की तान और मजलिसों को याद करते हैं

अप्रतिम कथाशिल्पी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के पात्र जितने अलमस्त, जीवन की ऊर्जा से भरपूर और योद्धा प्रवृत्ति के हैं, उतने ही संवेदनशील व प्रेम के रस से सराबोर भी हैं। शरत के सृजन का मुरीद पूरा जहान है। इसी तरह मुजफ्फरपुर के लोग इस बात से गौरवान्वित हैं कि शरत ने उनके शहर की ज़मीन पर पूरे एक साल अहसासों के अनगिन इंद्रधनुष रचे हैं। यहां की फिजाओं में उनके कोकिल कंठ की आवाज़ गूंज चुकी है! शरत का इश्क भी यहां परवान चढ़ा। पिटाई तक हुई और जब लिखने की ओर प्रवृत्त हुए तो साहू पोखर के विशाल मंदिर के एक कोने में बैठकर कहानियां व उपन्यास रचे।

साधु की संगत और भिक्षाटन

मुजफ्फरपुर में ऐसे लोगों की कमी न थी, जो घुमंतू और फक्कड़ कथा-शिल्पी शरतचंद्र से चिढ़ते थे, वहीं उनके मुरीदों की संख्या भी खूब थी। कहते हैं, प्रेयसी निरदा के प्रेम में व्याकुल होकर शरतचंद्र घर छोड़ निकल पड़े थे, तब एक साधु को उन्होंने गुरु बना लिया था। साधु ने बार-बार कहा कि बेटा, घर लौट जा, यह पथ बड़ा ही दुर्गम है... लेकिन शरत नहीं माने। शरत की धुन पर मुग्ध साधु ने उन्हें गेरुआ वस्त्र और रुद्राक्ष देकर शिष्य बना लिया। साधु के सत्संग में शरत कुछ दिन रमे रहे, फिर सबकुछ छोड़छाड़ पहुंच गए मुजफ्फरपुर।

साल 1900 की घटना है। गेरुए रंग में रंगे शरत ने भिक्षाटन में भी संकोच नहीं किया। कुछ दिन इसी तरह खाते-पीते हुए स्टेशन के पास धर्मशाला में बिताए। एक दिन बंगाली क्लब "वीणा कंसर्ट'' में पहुंच गए और वहां जो व्यक्ति सबसे पहले मिला, उससे ठेठ हिंदी में बोले, "मुझे चिट्ठी लिखने के लिए पोस्टकार्ड चाहिए।'' पोस्टकार्ड मिल जाने पर कलम मांगी और एक तरफ बैठ चिट्ठी लिखने लगे। गेरुआ वस्त्रधारी को बांग्ला लिपि में चिट्ठी लिखते देख संस्कृतिप्रेमी प्रमथनाथ भट्ट ने परिचय पूछा तो शरत बोले, "मैं एक साधारण बिहारी मानुस हूं।'' प्रमथनाथ ने मुस्कराते हुए कहा, "ये सब रहने दीजिए। हम आपको पहचान गए। अपनी मातृभाषा में बात कीजिए।'' उनकी बात सुन शरत मुस्करा दिए।

सुर भरी बांसुरी से सम्मान

शरत बहुत अच्छी बांसुरी बजाते थे। धर्मशाला से गुजरते हुए एक दिन संगीत प्रेमी निशानाथ वंद्योपाध्याय सुरीली कंठध्वनि सुनकर उन्हें अपने घर ले आए। बड़े भाई शिखरनाथ से परिचय कराया तो वे हंसकर बोले- "जानता हूं, तुम्हारी भाभी ने इनके बारे में बताया था। ये कहानियां भी लिखते हैं।'' अब रोज संगीत की मजलिस जमने लगी। उसी मजलिस में ज़मींदार महादेव प्रसाद साहू से परिचय हुआ। फिर तो दोनों में जमकर छनने लगी। शरत देर रात निशानाथ के घर मदहोश होकर लौटते। आखिरकार, शरत को ये आसरा छोड़ना पड़ा। महादेव साहू सहारा बने। हालांकि उनके रिश्तेदारों ने शरत पर आरोप लगाया कि उन्होंने महादेव को पथभ्रष्ट कर दिया है। बावजूद इसके, दोनों की दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

अनगिन किस्से "गल्प गंधर्व'' के...

शरत सिर्फ लिखते नहीं थे, किस्सेबाज भी आला दरजे के थे। उनकी झूठी-सच्ची कहानियां सुनकर लोग अचंभे में रह जाते। एक बार महादेव साहू की मजलिस में उन्होंने कहानी सुनाई- "मैंने राणाघाट में पुलिस के हाथों से एक लड़की को मुक्त कराया और उसकी प्राणरक्षा की।'' कुछ लोग इस दावे की सत्यता परखने राणाघाट चले गए। वहां छानबीन की तो सब कपोल कल्पित निकला। इन्हीं बातों के चलते वे "गल्प-गंधर्व'' भी कहे जाने लगे। दिन मस्ती में कट रहे थे कि एक रोज शरत को राह से गुजरती हुई निरदा दिख गईं। वही निरदा, जिसके प्रेम में पागल होकर उन्होंने घर-द्वार छोड़ दिया। वे निरदा के पीछे-पीछे चल पड़े, बदले में पीटे गए। बेहोश शरत की चेतना जब लौटी तो खुद को महादेव के घर पाया। हालांकि इस घटना से भी शरत ने सबक नहीं लिया। शहर के एक अधिवक्ता की बेटी राजबाला के साथ उनका स्नेहिल रिश्ता चर्चा में रहा।

वीरेन नंदा

No comments:

Post a Comment