बिहार दर्शन: गया में फल्गु नदी के पास स्थित विष्णुपद वेदी | Vishnupad Vedi near Falgu River at Gaya: Bihar Darshan

गया की फल्गु नदी के पास पितरों की आत्मिक शांति के लिए तर्पण करने की पवित्र व पुनीत परंपरा है। यहीं पर ‘विष्णुपद वेदी'' स्थित है, जहां जीवित व्यक्ति भी अपना पिंडदान कर सकते हैं...

विष्णुपद वेदी में मिलेगी मुक्ति...

गया इस अर्थ में बहुचर्चित और प्रतिष्ठित है कि यहां पुरखों का पिंडदान किया जाता है। फल्गु नदी के पास स्थित विष्णुपद वेदी के चलते इस स्थान की महत्ता बहुत अधिक है। मान्यता है कि धार्मिक अभिरुचि वाली दो बहनों- ‘मरीचि’ और ‘धर्मवार्ता’ ने कठिन तप कर सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर दिया। ब्रह्मा जी ने वरदान दिया, जिससे धर्मवार्ता ‘धर्मशिला’में परिवर्तित हो गईं और उन्हें भगवान विष्णु के साथ पूजे जाने का गौरव मिला।

धर्मशिला तले है गया

कहते हैं कि विष्णु जी की कृपा से राक्षसराज गयासुर को ‘धर्मशिला’ के नीचे निवास करने की जगह मिली। यहां विष्णु का दाहिना पैर टिका है। गयासुर को भगवान विष्णु का वरदान मिला कि इस स्थान को ‘पितरों का तीर्थ’ माना जाए। मान्यता ये भी है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भाई भरत ने यहीं पर पितरों की मुक्ति के लिए पूजा की थी। जनश्रुति के अनुसार, कोई भी व्यक्ति इस जगह पर नियमित तौर पर एक महीने तक विष्णु जी को तुलसीदल अर्पित करे तो उसे प्रभुकृपा प्राप्त होती है।

ऐतिहासिक महत्व का पूजास्थल

शुरुआत में विष्णुपद वेदी का भवन सुर्खी और चूने से बनाया गया था। तकरीबन 250 साल पहले इंदौर की तत्कालीन महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने भवन का जीर्णोद्धार कराया, इसके बाद पूजास्थल को वर्तमान स्वरूप मिला। गर्भगृह के बीचो-बीच एक वृत्ताकार स्थान पर सभी प्रतीक चिह्--नों और रेखाओं के साथ विष्णु के दाहिने पद (पैर के तलवे) का आकार उकेरा गया है।

खास बात ये कि गर्भगृह में किसी भी प्रतिमा की स्थापना नहीं की गई है। गयासुर के शरीर पर स्थापित धर्मशिला और उसके ऊपर विष्णु के दाहिने पैर का निशान है, इसलिए इसे वेदी की संज्ञा मिली। गर्भगृह से जुड़ा विभिन्न स्तूपों का बड़ा-सा बरामदा है, जहां तीर्थयात्रियों के दर्शन के लिए प्रवेश मार्ग बनाया गया है।

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